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गधे की स्वर्ग यात्रा
Moral Story गधे की स्वर्ग यात्रा:- एक गधा रोज सुबह-सुबह भगवान से कामना करते हुए कहा करता था "हे भगवान! मुझे इस धोबी से बचाओ। इसने मुझपर बोझा लाद-लादकर, मेरा कचूमर निकाल दिया है।" इसी प्रकार, रोज वह गधा भगवान का ध्यान किया करता था। एक दिन भगवान ने सोचा, चलो आज इस गधे को दर्शन दे ही दूं। यह सोचकर भगवान स्वर्ग से उस गधे के पास आये। वह गधा इस समय भी धोबी को कोस रहा था और भगवान का ध्यान कर रहा था। (Moral Stories | Stories)
भगवान उस गधे के सामने प्रकट होकर बोले, “कहो गधा! मुझे रोज क्यों ध्यान करते हो। तुम्हारे मन में जो भी कामना हो, मुझे बताओ, मैं उसे पूरा करूंगा।" गधे ने भगवान को अपने सामने देखा तो उसे विश्कस ही नहीं हुआ कि भगवान उसे साक्षात दर्शन दे रहे हैं।
उसने सोचा कि लगता है धोबी ही मुझे भगवान बनकर ठग रहा है। लेकिन, भगवान ने गधे को किसी प्रकार यह दिलासा दिलाया कि...
उसने सोचा कि लगता है धोबी ही मुझे भगवान बनकर ठग रहा है। लेकिन, भगवान ने गधे को किसी प्रकार यह दिलासा दिलाया कि “मैं भगवान ही हूं। अब गधे ने भगवान से अपनी दारूण कथा कही और धोबी की निर्दयता को ढेंचू-ढेंचू कर बखान किया। उसने कहा, "भगवान! सब तो मुझे गधा समझते हैं, क्या आप भी ऐसा ही समझते हैं?'' भगवान ने कहा नहीं! तुम तो गर्दभराज हो।" जैसे ही गधे ने यह सुना, वह खुश हो गया। गधे ने कहा, "भगवान! मुझे धरती पर रहने की अभिलाषा नहीं है। मुझे आप स्वर्ग में स्थान दे दें।" भगवान ने कहा “तथास्तु!” अब गधा भगवान के साथ स्वर्ग चला गया। एक दिन वह घूमते-घूमते इन्द्र के बाग में चला गया। वहां उसने जब घास को देखा तो वह उसे खाने लगा। इन्द्र के सेवक उस गधे को पकड़कर इन्द्र के पास ले गये। इन्द्र ने कहा, "क्यों गधे! तुम्हें हमारे बाग में घुसने की हिम्मत कैसे हुई।” अब तो बेचारा गधा बुरा फंसा। इन्द्र ने उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया। (Moral Stories | Stories)
वह गधा बेचारा स्वर्ग में अकेला घूमा करता था। एक दिन भगवान ने कहा, "क्यों गर्दभराज! सुख से दिन बीत रहे हैं न?" गधे ने कहा, प्रभु मुझे अपने धोबी और अपने परिवार की याद आती है। भगवान ने सोचा कि स्वर्ग में कोई धोबी नहीं है। चलो ठीक ही है, स्वर्ग में भी एक धोबी हो जाएगा। भगवान ने पुनः धरती से बहुत से गधों और धोबी को ला दिया।
अब जब सारे गधे एक साथ जमा हुए तो अपने स्वरलहरी ढेंचू-ढेंचू से स्वर्ग को संगीतमय बना दिया। इन्द्र के दरबार में जब ये ढेंचू-ढेंचू का स्वर पहुंचा तो उन्हें आराम में यह खलल जान पड़ा। इन्द्र ने गधों को फिर भी कुछ नहीं कहा। लेकिन गधों की ढेंचू-ढेंचू की आवाज से जब स्वर्ग की शांति भंग होने लगी तो भगवान ने उन गधों को चेतावनी दी, "देखिए गर्दभराज! यह स्वर्ग है। यहां आपकी ढेंचू-ढेंचू नहीं चलेगी। गधे ने कहा- "भगवान मुझ पर ज्यादती न कीजिए। क्या मुझे यहां बोलने का भी अधिकार नहीं मिलेगा? फिर मैं अपने इस ढेंचू-ढेंचू को किसे सुनाऊंगा। अच्छा होगा कि आप मुझे पुनः धरती पर भेज दें।" भगवान ने कहा- “तुम्हारी जब धरती पर जाने की इच्छा ही है तो मैं अब क्या कर सकता हूं। चलो मैं तुम्हें धरती पर भेज देता हूं।"
गधे ने जब धरती पर जाने की बात सुनी तो वह खुश होकर नाचने लगा। तभी अचानक उसके पीठ पर एक डंडा पड़ा। धोबी उस पर ताबड़तोड़ डंडा बरसा रहा था। धोबी ने कहा, "न जाने, दिन में सोया-सोया कौन सा सपना देखता रहता है।" उधर गधा मन ही मन खुश हो रहा था कि चलो सपनों में ही सही, स्वर्ग की यात्रा हो गयी। लेकिन, मुझे स्वर्ग से अधिक प्यारी यह धरती ही है। यह सोचते-सोचते उसने ढेंचू-ढेंचू की आवाज लगानी शुरू कर दी। (Moral Stories | Stories)
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